शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

कैसा लगेगा


            ग़ज़ल
                

मैं पहले तुम्हें याद करूँ कैसा लगेगा.

फिर प्यार उसके बाद करूँ कैसा लगेगा.


जाति,धर्म,भाषा, मज़हब के नाम पर,

मैं कोई गर फ़साद करूँ कैसा लगेगा.


रिश्तों के बंधनों सभी तोड़ कर अगर,

मैं खुद को आज़ाद करूँ कैसा लगेगा.


चढ़ते ही मुरझा गया मेरी मज़ार पर.

उस गुल की फरियाद करूँ कैसा लगेगा.


अंधेरों मे मेरे साथ जो दर तक तेरे चले,

रस्ता कोई ए जा द करूँ कैसा लगेगा.


हर सांस पर लिखा है तेरा नाम"गगन"की,

यह बात वाहियाद करूँ कैसा लगेगा.

                   जय सिंह "गगन"

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