शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

मत कहो मुझे दुःख की गगरी.







मत कहो मुझे दुःख की गगरी मैं माँ की राजदुलारी हूँ.

अबला बेबस असहाय नहीं मैं पिय की प्राण पियारी हूँ.


तुम करो न मुझसे भेदभाव मुझको दुनिया में आने दो,

मैं खुद को साबित कर दूँगी मुझे अपना फर्ज निभाने दो.


भारत की मैं जीवन रेखा मैं नदियों की जलधारा हूँ.

मैं धरती की हरियाली हूँ मैं आसमान का तारा हूँ.


एवेरेस्ट पर इन क़दमों के खोजो तुम्हें निशान मिलेंगे.

सागर की गहराई में भी नव-जीवंत प्रमाण मिलेंगे.


युगों-युगों से इन कवियों ने मेरी महिमा गाई है.

है इतिहास गवाह सदा ही हमने वफ़ा निभाई है.


मातृभूमि की रक्षा करने मैं रजिया सुल्तान बनी.

अमर प्रेम की गाथा गति मैं मुमताज महान बनी.


राधा बनकर मैंने ही तो पावन प्यार की शिक्षा दी है.

सीता बनकर पवित्रता की मैंने अग्नि परीक्षा दी है.


आदि शक्ति माँ काली बनकर चंड-मुंड को मारा मैंने.

पतित पावनी गंगा बनकर हर पतितों को तारा मैंने.


सती अहिल्या बन श्रापों का सारा बोझ उठाया मैंने.

कौशिल्या-सुमित्रा बनकर राम लखन को लाया मैंने.


रम्भा और मेनका बनकर तप का मान बढाया मैंने.

शबरी बनकर नारायण को जुंठे बेर खिलाया मैंने.


मेरा ही वह खून था रोका अस्वमेध का घोडा जिसने.

मैंने ही अभिमन्यू जन्मा चक्रब्यूह को तोडा जिसने.


मैं भारत माता का आँचल तन पर लिपटी खादी मैं.

शाहस की परिभासा कहती वही इंदिरा गाँधी मैं.


जब जब छेड़ी तान "लता"बन यह जग सारा झूमां है.

यहीं "कल्पना"बनकर मैंने आसमान को चूमा है.


सरहद पर जान लुटाने को मैं खड़ी लिए तलवार सदा.

दुश्मन को मजा चखाने को मैं तत्पर और तैयार सदा.


फेरे सात लिए जिसके संग सातों जनम निभाया मैंने.

हर संभव क़ुरबानी देकर सदा प्यार बरसाया मैंने.


मैं तो हूँ बस प्रेम दीवानी और कोई इल्जाम न दो.

नहीं चाहिए श्रद्धा मुझको पर अबला का नाम न दो.


जहर सदा ही पीती आई और कहो तो पी लुंगी.

मैं कान्हा के इन्तजार में राधा बनकर जी लुंगी.


झूंठी रस्मों के बंधन से खुद को जोड़ नहीं सकती.

अनचाहे रिश्तों के खातिर दुनियां छोड़ नहीं सकती.


प्रेम दीवानी मीरा कह लो या झाँसी की रानी तुम.

मैं प्रयाग पथ पर अबला बन पत्थर तोड़ नहीं सकती.

जय सिंह "गगन"

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