गुरुवार, 26 जनवरी 2012

हुकुम होई त बोली साहब.


                         बघेली कविता



हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब. 

मुहु आपन हम खोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.


घर म नाउ-बारी खाइनि,अफ़सर औ अधिकारी खाइनि.

नेता खाइनि मंत्री खाइनि,बचा-खुचा उपयंत्री खाइनि.

आयेज कहब त लागी नागा,फाइलि लिखै क बाबू माँगा.

खीस निपोरे सगळे धायेन बदनामी भर हमहूँ खायेन.


जेल जाइ क मिला न हियर कहउ केउ हमजोली साहब.

हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब. 


जिला जाइ कइ विपदा गाउब, सोचे रहेन तइ काम लहाउब.

बाबू सब खिसिआइ के धाये,चपरासी गुर्राइ के धाये.

मर्यादा सब खोइ के बोला,पइसा कौड़ी होइ त बोला.

जानित हइ हुशियार बड़े ह,नहबाबा अस घोड़ खड़े ह.


एंह देउतन के कसि कइ लागइ सोची चंदन रोली साहब.

हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.


नोट खाइगें झोरा खाइनि चाउर खाइनि बोरा खाइनि.

बची-खुची सब आस खाइगें भवनन क संडास खाइगें.

सगला हमरे आड़े खाइनि दुवे तिवारी पांडे खाइनि.

बंगला क हरबाही माँगा,साहब क कुछु चाही माँगा.


गद्दा कहिनि रज़ाई दीन्हेन तबहूँ माँगा खोली साहब.

हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.


चारिऊ कइति ते हूरइ जनता,देखइ त बस घूरइ जनता.

सोचइ पइसा पाइग देखा,परधनमा सब खाइ ग देखा.

फटा करेजा हमरउ झाँकी,मर्यादा कूछु अपनउ ताकी.

अतना नांगा करा न देखी,छाती मोगरा धरा न देखी.


मान अउर मर्यादा माँगी हमहूँ फांदे झोली साहब.

हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.


फाइलि चली निहारी अपना, करी जाँच इन्क्वारी अपना.

पइसा मिला अधूरा देखी तबउ काम हइ पूरा देखी.

फटा हइ सब म खीसइ साहब,काम हइ तबहूँ बीसइ साहब.

जईसन पईसा पाई मनई,ओइसइ काम कराई मनई.


चाहइ "गगन" क सूली टागी चाहइ मारी गोली साहब.

हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.

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