शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

नौ दो ग्यारह


    कविता
          

कक्षा में गणित पढ़ाती हुई

मेडम के समक्ष

रामू ने अपना मुह खोला,

तपाक से बोला-मेडम

हिन्दी की टीचर रस्खान को

बड़े चाव से गाती हैं.

हिन्दी में ही बोलती हैं,पढ़ाती हैं.

अँग्रेज़ी की टीचर इंग्लीश कल्चर पर

दिलोजान से मरती हैं,

क्लास में सिर्फ़ अँग्रेज़ी में ही बात करती हैं.

फिर आप भी गणित के,

सर पर उतरिए चढ़िए,

क्लास में सिर्फ़ गणित में ही बातें करिए.

यह सुनते ही

मेडम का दिमाग़ सनक गया.

उनका माथा भनक गया.

लड़के की बात्तमीज़ी पर सोचने लगी.

अपने सर के बॉल नोचने लगी.

बोली-ज़्यादा तीन पाँच करेगा तो

कर दूँगी कामवखत ज़ीरो का गुणा,

खुद को चाहकर भी खोज नही पाएगा.

अलग से दो चार दूँगी तो,

नौ दो ग्यारह हो जाएगा.

                 जय सिंह "गगन"

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