नव-वर्ष आया है.
उम्मीद के धागे में सपनो को पिरोकर,
अतीत के घावों को शबनम से धो कर,
सूरज को गोद में प्यार से दुलारती,
आँचल की छाँव में ठंडक को पालती,
द्वार पर धूप बड़ी आतुर है खिलने को,
खुशी बनी दुल्हन बेचैन खड़ी मिलने को,
हौले से किरणों ने द्वार खटखटाया है,
उठिए नव-वर्ष फिर मिलने को आया है.
गम का अँधेरा अब दूर बहुत दूर है,
हर तरफ खुशियों का छाया सुरूर है.
भोर का प्रभात अब आभा फैलाएगा,
सांसों का साज नया गीत लिए आएगा.
छाई है धरती पर मस्ती शबाब की,
हंस रही स्वच्छंद पंकुड़ी गुलाब की,
ठंडी हवाओं ने नीद से जगाया है.
नव-वर्ष आया है नव-वर्ष आया है.
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