ग़ज़ल
वो कहते हैं कि मैं देश की आवाम नहीं हूँ.
क्यूँकि मैं जमूरियत का गुलाम नहीं हूँ.
इल्ज़ाम मेरे सर पर लगाना ये सोचकर,
औरों की तरह शहर में बदनाम नहीं हूँ.
मैं भुखमरी ग़रीबी लाचारियों के बीच,
चर्चित हूँ हर गली में गुमनाम नहीं हूँ.
क्रांति का सूरज हूँ कभी ढल नहीं सकता.
मैं सुबह जिंदगी की कोई शाम नहीं हूँ.
पीना संभल करहै मेरा नशा अजीब,
जब चाहो उतर जाउ वो जाम नहीं हूँ.
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