गगन
शुक्रवार, 22 जुलाई 2016
जिन्दगी
चलो थोडा जिया,अच्छा हुआ
कुछ ख़ास लिख डाला.
मुहब्बत टूट कर की थी,
मगर बकवास लिख डाला.
वो मेरे साथ उल्फत का ,
क्षणिक एहसास क्या पाया.
उसी की याद में जी भर जिया,
इतिहास लिख डाला.
"गगन"
बुधवार, 13 जनवरी 2016
सवाल
थाम लिया गर हाँथ तेरा तो
हाल सोच ले क्या होगा।
अब तक सिर्फ खैरियत पूछी
उठने लगे सवाल कई।
तुम्हारा शहर
खुशबू अंगूरी बेलों सी ,है बिखरा नशा हवाओं में।
यह शहर तुम्हारा शहर नहीं ,लगता जैसे मयखाना हो।
यार जुलाहे
मैं रोया जग खूब हंसा है यार जुलाहे।
इश्क़ मोहब्बत एक नशा है यार जुलाहे।
हो न जाय बदनाम कहूँ तो कैसे कह दूं।
मन मंदिर में कौन बसा है यार जुलाहे।
ख्वाब
पलकों से जो टूटे आंसू
उनको गंगाजल लिख डालूँ।
ख्वाबों का संसार सजा कर
उनको ताज महल लिख डालूँ।
भीगे भीगे होंठ हिले तो
कतरा कतरा शब्द गिरे।
शब्दों को छंदों में बाँधूं
तुम पर एक ग़ज़ल लिख डालूँ।
शुक्रवार, 29 मई 2015
सोच
मेरी ही खामोशी जिससे मिट सा गया वजूद मेरा.
सोच रहा हूँ जीने का अंदाज बदल कर देखूं क्या ?
चलो गाँव की ओर
अंधियारी रातों से डर कर, छम से कोई सपना टूटे.
शहरों की इस चका-चौंध में,कल को कोई अपना छूटे.
कही अमावस निगल न जाए,कोई शाम सुहानी फिर से.
रोक न ले बढ़ते कदमों को,अपनी इक नादानी फिर से.
स्वागत को आतुर है सूरज,लिए शबनमी भोर चलो.
चलो गाँव की ओर चलो,चलो गाँव की ओर चलो.
"गगन"
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