बघेली कविता
दूध बहुत मँहगा भ सस्ती इ दारू हइ.
गाउँ केर हर लरिका पिअइ म उतारू हइ.
मुहु खोलइ भाखा म वजन बहुत भारी हइ.
जीभि जो हलाबइ त झर झराति गारी हइ.
लाजि शरम एनकर सब कोठे पर रक्खा हइ
.
दाई महतारी त ओठे पर रक्खा हइ.
आँही बड़मनई पर चाल सब गमारू हइ.
गाउँ केर हर लरिका पिअइ म उतारू हइ.
पौआ के आड़े म बोतल भर झोंकत हँ.
राह चलत मनई क गोरू अस ठोकत हँ.
ज़ेबा कस हाथ रोज कुठलिउ म फेरत हँ.
कमे घटे राहिनि क अँधिअरहा घेरत हँ.
बची केऊ कसिकइ जब काम जानमारू हइ.
गाउँ केर हर लरिका पिअइ म उतारू हइ.
जमी हबइ महफ़िल औ बातचीत जारी हइ.
एक बोतल देशी कइ ज़ेबा म डारी हइ.
लादेन के साथ बइठी चारि पेग मारे हँ.
मंत्री मनीस्टर सब खीसा म डारे हँ.
लिहिनि दिहिनि एइ फँसा बपुरा बंगारू हइ.
गाउँ केर हर लरिका पिअइ म उतारू हइ.
संध्या सकारे इ चारि पहर बागत हँ.
घरे क परानी सब ताकि-ताकि जागत हँ.
मुनुआ त ताके हइ पापा कब अउबे तूँ.
बस्ता खोलौबे पहाड़ा लिखौबे तूँ.
करम धुनति छिटई अस रोबति मेहरारू हइ.
गाउँ केर हर लरिका पिअइ म उतारू हइ.
घरे रहा घरे पिया घरबइ पिआबा तूँ.
मागि जाचि काम करा डाका न नाबा तूँ.
गउना के इज्जति क खोइ-खोइ बारे न.
बाप महतारी क जीतइ तूँ मारे न.
"गगन" क बेटउनउ त सबइ कस उबारू हइ.
गाउँ केर हर लरिका पिअइ म उतारू हइ.
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