शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

माडर्न आर्ट


   कविता
            

घर की दीवार पर टॅंगा कपड़ा,

मेरे कला प्रेमी मित्रा को भा गया.

वा अपने रंग में आ गया.

बोला-वाह क्या सरिता है,क्या नीर है,

वाकई बहुत खूबसूरत तस्वीर है,

एक तरफ कुआँ,दूसरी तरफ खाई है.

इस कलाकृति में अप्रतीम

सुंदरता समाई है.

रंगों का मेल निराला है.

कलाकार ने दिल के दर्द को

कैनवास पर उतारा है.

सूरज की रोशनी पर

बादलों की लगाम है

रूमानियत का चेहरा श्वेत है,श्याम है.

सूखी टहनी पर बैठी

चिड़िया वाकई स्मार्ट है.

यार यह अद्भुत माडर्न आर्ट है.

पर तूँ तो इसका सौकीन नहीं,

फिर पाया कहाँ से.

यह अनुपम कलाकृति टून लाया कहाँ से.

हमने कहा-यार मज़ाक मत कर,

मैं तेरी कला परख की दाद देता हूँ.

पर यह कपड़ा मॉडर्न आर्ट नहीं,

बल्कि मैं इससे अपनी,

साइकल पोछने का काम लेता हूँ.

                  जय सिंह "गगन"

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