बघेली कविता
हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.
मुहु आपन हम खोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.
घर म नाउ-बारी खाइनि,अफ़सर औ अधिकारी खाइनि.
नेता खाइनि मंत्री खाइनि,बचा-खुचा उपयंत्री खाइनि.
आयेज कहब त लागी नागा,फाइलि लिखै क बाबू माँगा.
खीस निपोरे सगळे धायेन बदनामी भर हमहूँ खायेन.
जेल जाइ क मिला न हियर कहउ केउ हमजोली साहब.
हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.
जिला जाइ कइ विपदा गाउब, सोचे रहेन तइ काम लहाउब.
बाबू सब खिसिआइ के धाये,चपरासी गुर्राइ के धाये.
मर्यादा सब खोइ के बोला,पइसा कौड़ी होइ त बोला.
जानित हइ हुशियार बड़े ह,नहबाबा अस घोड़ खड़े ह.
एंह देउतन के कसि कइ लागइ सोची चंदन रोली साहब.
हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.
नोट खाइगें झोरा खाइनि चाउर खाइनि बोरा खाइनि.
बची-खुची सब आस खाइगें भवनन क संडास खाइगें.
सगला हमरे आड़े खाइनि दुवे तिवारी पांडे खाइनि.
बंगला क हरबाही माँगा,साहब क कुछु चाही माँगा.
गद्दा कहिनि रज़ाई दीन्हेन तबहूँ माँगा खोली साहब.
हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.
चारिऊ कइति ते हूरइ जनता,देखइ त बस घूरइ जनता.
सोचइ पइसा पाइग देखा,परधनमा सब खाइ ग देखा.
फटा करेजा हमरउ झाँकी,मर्यादा कूछु अपनउ ताकी.
अतना नांगा करा न देखी,छाती मोगरा धरा न देखी.
मान अउर मर्यादा माँगी हमहूँ फांदे झोली साहब.
हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.
फाइलि चली निहारी अपना, करी जाँच इन्क्वारी अपना.
पइसा मिला अधूरा देखी तबउ काम हइ पूरा देखी.
फटा हइ सब म खीसइ साहब,काम हइ तबहूँ बीसइ साहब.
जईसन पईसा पाई मनई,ओइसइ काम कराई मनई.
चाहइ "गगन" क सूली टागी चाहइ मारी गोली साहब.
हुकुम होइ त बोली साहब हुकुम होइ त बोली साहब.
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