ग़ज़ल
रिश्तों की डोर तोड़कर तुम क्यूँ चले गये.
मजधार में यूँ छोड़ कर तुम क्यूँ चले गये.
मैं पूंछता तुमसे मेरा था गुनाह क्या.
फिर इस कदर मुंह मोड़कर तुम क्यूँ चले गये.
चाहूँ तो कभी चाह कर भी भूल ना सकूँ.
यादों से अपनी जोड़कर तुम क्यूँ चले गये.
आँखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा.
पलकों को मेरी खोल कर तुम क्यूँ चले गये.
हकीकत ना सही ख्वाब में ही बात तो होती.
आये और टटोलकर तुम क्यूँ चले गये.
नीरस सी जिंदगी है कोई रस नहीं रहा.
"गगन"को निचोड़ कर तुम क्यूँ चले गये.
जय सिंह "गगन"
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