बघेली कविता.
डेहरी म अँसुअन के धार छोडि आई हइ..
नइकी दुलहिया भतार छोडि आई हइ.
काजे म जउन कुछु मइके म पाइसि तइ
हांथे कइ मेहदी,स्रिंगार छोडि आई हइ.
मेहरारू छोडि ससू, कार जउन
मागइ त,
अइसन उ जाहिल, गमार
छोडि आई हइ.
राति दिना फफकति हइ भीति के आड़े म,
जइसइ के सगला भड़ार छोडि आई हइ.
सासु बहुत रोबति है पढ़ी लिखी पुतउ क,
छोलइ क ओकर बगार छोडि आई हइ.
जउने म बपुरी क चाहिनि तइ जारइ क,
अँगने म कॅंडा उजारि छोडि आई हइ.
इहउ हबइ मुद्दा कुछु एहूँ पर सोचा त.
सोचइ क एक ठे विचार छोडि आई हइ.
जय सिंह"गगन"
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