बघेली कविता.
रमुआ अउर टिफिन
एक दिन मास्टर साहब
दुपहर कइ भुखाने
कक्षा म सकाने
न केहू से पूछिनि न बोलिनि
रमुआ क बस्ता खोलिनि
अउ ओसे टिफिन मारि दिहिनि
जउन बपुरा लाबा तइ
सगला झारि दिहिनि
सेधान चाटत रहे तबइ
रमुआ आइ ग
दिखिसि त चउआइ ग
मास्टर साहब सोचिनि
जो एक हडकाउब
कुछु बताउब
त सार इया रोई
गाँउ मोहल्ला माँ सगळे बोई.
एह से ओका बलाइनि
सम्झाइनि
कहिनी हम जानित हइ
तइ सब जानत हसु
हमका बहुत मानत हसु
पइ इ बताउ हमार नाउ लउबे त न
घरे माँ महतारी पूछी त बतउबे त न
रमुआ कहिसि- मास्टर साहब
अपना सेतिऊ चउआन हमन
बिना मतलब क काहे परेशान हमन
हमका भुखान देखी त पूछी जरूर
इ हम मानित हइ
हमार महतारी ओका हम
खुब जानित हइ
कही के टिफिन नहीं खाए
केउ चोराइ लिहिसि
पइ आखिर हमहूँ
अपनइ क चेला आहेंन
कही देब नहीं अम्मा
कक्षा म एक ठे सार कुकुर घुसा रहा
उहइ खाइ लिहिसि .
जय सिंह”गगन”
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