वही शहर है , वही घर , वही नज़ारे हैं.
यहीं पे हमने भी,कई साल गुजारे हैं.
गली ने थाम रखा है,सड़क का दामन,
अटूट रिश्ता है,मगर ताक में दरारें हैं.
वही चौखट,वही कमरे,वही हैं दरवाजे,
दुःख है आँगन का,जिसे बांटती दीवारें है.
वही आँचल,वही ममता ,वही माँ है.
फर्क इतना कि,अब तकदीर के सहारे है.
वही पिता,वही चाहत,मगर झुके कंधे
आख़िरी सांस कोई आस तो निहारे है.
कोई नहीं कि जिसे,फक्र से कहूँ अपना,
वही आँचल,वही ममता ,वही माँ है.
फर्क इतना कि,अब तकदीर के सहारे है.
वही पिता,वही चाहत,मगर झुके कंधे
आख़िरी सांस कोई आस तो निहारे है.
कोई नहीं कि जिसे,फक्र से कहूँ अपना,
और वो खुद भी कहे,"गगन"तो हमारे हैं.
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