उम्मीदों की
चिता सजी है.
अरमा झरते आँखों से.
धधक रहा है अंतर्मन यह,
सुलगी सुलगी सांसों से.
टूट रहे हैं रिश्ते नाते,
टूट रहे हैं वादे भी.
कठिन कसौटी पर चढते ही,
टूटे नेक इरादे भी.
प्यार और ममता जैसे ये,
सारे शब्द पराये हैं.
अपनों से ही दूर हो रहे,
अब अपने ही साये हैं.
हर चेहरा अपना लगता है,
पर मुझसे अनजाना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
अरमा झरते आँखों से.
धधक रहा है अंतर्मन यह,
सुलगी सुलगी सांसों से.
टूट रहे हैं रिश्ते नाते,
टूट रहे हैं वादे भी.
कठिन कसौटी पर चढते ही,
टूटे नेक इरादे भी.
प्यार और ममता जैसे ये,
सारे शब्द पराये हैं.
अपनों से ही दूर हो रहे,
अब अपने ही साये हैं.
हर चेहरा अपना लगता है,
पर मुझसे अनजाना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
रौद्र बड़ा है
सूरज जाने,
कब जलता आकाश बुझे.
प्यासा अगर समंदर हो तो,
जाने कैसे प्यास बुझे.
कुछ दिन से यह भीड़ बड़ी है,
जाने क्यूँ श्मशानों में.
लाशों की खेती दिखती,
हर खेत और खलिहानो में.
कातिल दिल है तो फिर उसका,
प्यार भरा अफ़साना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
प्यासा अगर समंदर हो तो,
जाने कैसे प्यास बुझे.
कुछ दिन से यह भीड़ बड़ी है,
जाने क्यूँ श्मशानों में.
लाशों की खेती दिखती,
हर खेत और खलिहानो में.
कातिल दिल है तो फिर उसका,
प्यार भरा अफ़साना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
कैसा देश और कैसी सरहद,
बेच रहे चौराहों पर.
संविधान भी मौन खड़ा है,
इनके किये गुनाहों पर.
कुछ चेहरों को देख डर रहे,
कुछ चेहरे बेचारे देखो.
कुछ के आगे नतमस्तक हैं,
देखो चेहरे सारे देखो.
मेरी ही बंदूकों से यूँ,
मुझ पर सधा निशाना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
कुर्शी के दीवाने लगते ,
आस-पास के गाँव यहाँ.
ऐसी कानाफूसी मानो,
कल हो कोई चुनाव यहाँ.
वचनबद्ध है कोई चेहरा,
कुछ चेहरों के आगे.
कोई है तैयार खडा
कब,प्रजातंत्र ले भागे.
इनकी संसद सत्ता तो फिर,
सब का आना जाना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
दरिया जैसी आँखें लेकिन,
पानी की एक बूँद नहीं.
रोते हुए हैसियत कहती,
उसका कोई वजूद नहीं.
घुट-घुट कर मरते हैं चहेरे,
घर की चारदीवारी में.
चौखट पर ईमान बिका,
यह झलक रहा लाचारी में.
नई शदी का नया दौर यह,
लगता मगर पुराना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
इस हम्माम में सब नंगे फिर,
यह नाटक यह ड्रामा कैसा?
काले दिल का धन काला तो,
फिर उस पर हंगामा कैसा?
जो चेहरा हमको दिखता वह,
केवल एक मुखौटा है.
असली चेहरा,बेच वतन को,
कल विदेश से लौटा है.
बस्ती का बच्चा-बच्चा फिर,
सिस्टम का दीवाना क्यूँ है?
शहर मेरा वीराना क्यूँ है?
SHAASAN JANTA KA HAI GAR FIR KYU
जवाब देंहटाएंJANTA YAHA KI SHOSHIT KYU HAI
KAR LAG RAHE VIKAAS KE LIYE TO
VIKAAS KI DHAARA RUKATI KYU HAI
VICHAAR ABHIVYAKTI KO SWATANTR HAI TO
JANMAANAS KHAMOSH KYU HAI
JASHN ULLAAS KI YE BASTI HAI TO
HAR DIL ME SANNAATA KYU HAI
PRAJAATANTR ME SHAKTI HAI TO
PRAJA KO YE TANTR SATAATA KYU HAI
WAAH MANISH KYA BAAT HAI
जवाब देंहटाएंTHANKS,