बघेली कविता
चुनाउ हबइ
बैनर अउर पोस्टर ससुरा पाटा सगले गाँउ हबइ.
उज्ज़र-बज्ज़र नेता घूमा लागइ ससू चुनाउ हबइ.
जेका देखतइ काकू मोरे छरकत रहें घिनात रहें.
धरे मूड़ गोड़सउरे पूँछा कहाँ बताबा पाउँ हबइ.
पुनि धाएँ सरपंचउ काकू मागइ बोट मुहल्ला मा.
बोटरलिस्ट म हेरि रहे हँ केकर-केकर नाउ हबइ.
"जननी"अउर"लाडली"डारे टहरि रहे हँ झोरा मा.
नई-नई दुलहिनि से पूँछा केकर भारी पाँउ हबइ.
चाउर, गोहूँ, घरे क पइसा, ज़ोरब
नाउ"ग़रीबी"मा.
चित्त परइ के पट्ट लगाए रमुआ देखा दाँउ हबइ.
बाँटि रहे हाँ ओन्ना लत्ता कमरा गली मोहल्ला मा.
बूँकि रहे हँ थोरउ काहीं जेकर जहाँ प्रभाउ हबइ.
"गगन"बने बकलोल परे हँ चद्दर तानि दुआरे मा.
जानत हमा कउने कइती जनता केर झुकाउ हबइ.
जय सिंह"गगन"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें