बघेली कविता.
कलुआ अउर महट्टर.
अपने लगे बलाइनि,
ज़ोर से हड़काइनि,
कहिनि-ससू तइ त
हमका हैरान करे हसु,
अब का कही के कतना,
परेशान करे हसु.
तइ हमार करेजा काहे
चाबत थे.
सगला लरिका
एकट्ठइ टाइम से आबत हाँ,
तइ रोज लेट काहे आबत थे?
इया सुनि कइ कलुआ क,
चंचल मन डोला,
उआ मास्टर साहब से बोला-
इ ससू सुअरिनि क झुँडि आहीं,
साथइ अइहीं.
इआ हमार दावा हइ.
पइ हम त शेर आहेन.
जउन का कबउ झुँडि म आबा हइ.
जय सिंह"गगन"
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