बघेली कविता.
मुरगी.
मास्टर साहब,
कक्षा म नज़र दउड़ाइनि,
पीछे के कुर्सी म,
रमुआ क रोबत पाइनि.
कहिनि-ससू सगला दिन,
कक्षा म सोबत हसु.
अब का होइ ग?
काहे रोबत हसु?
रमुआ कहिसि-मास्टर साहब,
इआ गणित वाली मैडम,
आजु आपन घरे क गुस्सा,
हमरेन उपर उतारिसि हइ.
हम ओका मुरगी कहि दिहेन त,
बलभर मारिसि हइ.
मास्टर साहब कहिनि-
ससू तइ दतनिपोर क,
दतनिपोरइ रहे.
अरे मैडम क मुरगी काहे कहे?
रमुआ कहिसि-मास्टर साहब,
हमहूँ पढ़े हमन,
आख़िर कउनउ सवाल पर,
कब तक चुप्प रहब?
जउन रोज हमका
कापी म अंडा देई,
ओका मुरगिनि न कहब.
जय सिंह"गगन"
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