सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

सो लेने दो.



रंग प्यार का गहरा है पर,
धुलता है धो लेने दो.
वर्षों से सावन सूना है,
आखों को रो लेने दो.
ठंडी,गर्मी,जेठ,दुपहरी,
कितनी रातें जागा हूँ,
घनी गेसुओं की छाया में,
कुछ पल तो सो लेने दो.

फिर जाने कब केश खुलें ये,
कब बाहों का हार मिले,
कब जाने प्यासे अधरों को,
इन अधरों का प्यार मिले.

जाने कब ऐसी सेज सजे,
कब महके चंदन रातों को,
जाने कब कहाँ पनाह मिले,
दिल के झुलसे जज्बातों को.

कब कहाँ खुले यह घूघटपट,
कब नयन मिलें यूँ शरमाएँ
कोई हाथ फिरे माथे पर,
कोई उलझी लत सुलझाए.

कब फिर नयनो से नयन मिलें,
कब हटे शर्म का यह बंधन.
होठों से जलते होठों का,
फिर जाने कब हो आलिंगन.

बस क्षणिक किसी की यादों में,
मैं खोया हूँ,खो लेने दो,
घनी गेसुओं की छाया में,
कुछ पल तो सो लेने दो.

"गगन"

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapki kavita me jan hai sir kuch es traha se dil ke jajbaat nikal aat haie

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    1. Rani Madam Jan Kavita Men Nahi Hoti......Pathak Use Pasand Kar Usamen Jan Daal Dete Hain.....Ye to Bas aap ka pyaar hai jo is kavita ko haasil hua hai.....aasha hai aise hee rachanaaon ko mpyaar milataa rahega.

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