गुरुवार, 24 जनवरी 2013

बाबू पंडित जी मारत हँ.



बाबू पंडित जी मारत हँ................


कसि कइ जई स्कूल, मस्‍टरबे आंखी काडि निहारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ, बाबू पंडित जी मारत हँ.

चारि महीना बीति ग अजुऔ, कखागघा लिखवावत हँ.
नहीं बनत जब पून्छिथे त, उ खिसियाई के धावत हँ.
चौथा कइ किताब पढ़वैही, अँग्रेज़ी लिखवइहीं.
थोरौक जो ग़लती भइ त, नटई डंडा नईहीं.

दिन भर सोबत हँ कुर्सी पर, पान-सुपारी झारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ, बाबू पंडित जी मारत हँ.

मरिहीं गप्प सड़ाका दिन भर, पांसा दिन भर खेलिहीं.
हमका पचेन क खेलत देखिहीं, लइ कइ छड़ी उकेलिहीं.
दुपहर कइ स्कूल म अईहीं, बाँधे बड़ा मुरइठा.
हम जो लेट भयेन त कहिहीं, कान पकड़ि कइ बइठा.

घरे गाउ क गुस्सा सगला, हमरेन उपर उतारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ, बाबू पंडित जी मारत हँ.

जब से कक्षा म अइहीं त, अँउघईहीं जमुअईहीं.
खोलि कइ डब्बी नगद बूंक् भर, चून औ सुरती खईही.
थून्कि-थून्कि कइ भरे हँ सगळे, भुइयाँ खिड़की भीती म.
प्रेम से धूँकत बीड़ी घुमिही, चारिउ कईति पछीती म.

जइसइ कतना थके हों घर म, अइसन टांग पसारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ, बाबू पंडित जी मारत हँ.

लरिकन से गोबर टरबईहीं, पोतबईहीं झरबईहीं.
खाइ के झउआ भर अईहीं त, डेकरि-डेकरि डेरबईहीं.
सगली राजनीति भारत क, एहीं आइ बतईहीं.
ज़ोर-ज़ोर से हँसिही एहीं, ई खोतड़ पिरबईहीं.

हम बोली त लइकइ गोदा, ई आरती उतरात हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ, बाबू पंडित जी मारत हँ.

लरिका औ मास्टर अइसन हँ, जइसइ मूस- बिलारी.
ताड़े रहत हँ मौका मिलतइ, पकड़ि कइ कान उखारी.
तूँ अइसने पढाई म अब, पास क आस निहारे न.
नाउ कटाइ ले नहीं त देखा, फेल होब त मारे न.

हर चउथे दिन स्कूली म, अर्जी छोडि नदारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ, बाबू पंडित जी मारत हँ.

जय सिंह "गगन"

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