शनिवार, 24 नवंबर 2012

क्या यह तुम्हें अच्छा लगेगा?



बेबसी घर-घर बसे, क्या यह तुम्हें अच्छा लगेगा?
रूह में खंजर धंसे, क्या यह तुम्हें अच्छा लगेगा?

हर शहर में रावणों की ताज पोशी देखकर,
राम पर लंका हँसे, क्या यह तुम्हें अच्छा लगेगा?

फिर परीक्षित हो फना यूँ  मित्रता के श्राप से,
फिर कोई तक्षक डसे, क्या यह तुम्हें अच्छा लगेगा?

देख कर बेजान पुतला कल अगर ध्रितराष्ट्र के,
दंभ बस बाजू कसे, क्या यह तुम्हें अच्छा लगेगा?

लूट ले सूरज न कोई फिर किसी की आरजू,
छद्म बस कुंती फंसे, क्या यह तुम्हें अच्छा लगेगा?

जय सिंह गगन

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप यूं ही लि‍खते रहें तो हमें अच्‍छा लगेगा...

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  2. आप सब का स्नेह यदि इसी तरह से मिलता रहा तो कलम के हौसले बुलंद रहेंगे........थैंक्स दी .......हौसला आफजाई के लिए....

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