मंगलवार, 6 नवंबर 2012

वजूद.



विता 

मत झांको,
बीते हुए कल के झरोंखों से,
वो खौफनाक हादसे ,
तुम्हें झकझोर देंगे.
वक्त के साथ धुंधले हों चुके,
यातनाओं के अक्श,
वर्षों से तिल-तिल बढ़ते,
मनोबल को तोड़ देंगे.
जहन में पैदा होती ,
महत्वाकांक्षायों को पनपने दो,
कुंठाओं से ग्रसित ,
जिंदगी की असीम रातों को,
सुन्दर और हसीन सपने दो.
समाज की दकियानूशी बंदिशें ,
तुम्हारी कामयाबी पर ,
ग्रहण लगा रही हैं.
सफलता तुम्हारे पास हों कर भी ,
तुम्हें छू नहीं पा रही है.
घूँघट के अन्दर कैद तुम्हारी शक्ति को,
आज का परिवेश
सबला के रूप में पहचानने से,
इनकार कर रहा है.
तुम्हारे साथ चाँद पर
कदम रखने से डर रहा है.
इसलिए समय का लोहा गर्म है,
हंथौडा मारो,
समाज को वक्त के आइने में उतारो.
याद रहे,
वक्त की ठोकरों से सूख चुकी ,
पेंड की हर टहनी को,
तुम्हें पतवार बनाना है.
अबला के रूप में कदम कदम पर,
रौंदी गई मिटटी को,
चमक दमक एवं कांति से परिपूर्ण ,
मीनार बनाना है.
जिसका अप्रतीम सौन्दर्य ,
सारी कायनात को भा जाए.
जिसकी चोटी पर खड़े हों कर,
यदि तुम बांहें फैलाओ तो
सारा आसमान उसमें समां जाए.
"जय सिंह "गगन"

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