कविता
सुख दुख जीवन के दो पहलू मैने तो हर हाल जिया है.
यह दुनिया है गम का सागर जिसको हमने रोज पिया है.
बचपन की दहलीज चढ़ी तो
महगाई की मार पड़ी
और जवानी के आँगन में
मुश्किल थी हर बार खड़ी.
टूटे सपने बिखरी यादें सबको अंगीकार किया है.
यह दुनिया है गम का सागर जिसको हमने रोज पिया है.
जीवन का हर मोड़ अनोखा,
कितने ख्वाब अधूरे छूटे
कभी-कभी तो लगा है ऐसे,
जैसे अब यह सांस न टूटे.
नई शुबह की आशाओं ने मुझको आकर थाम लिया है.
यह दुनिया है गम का सागर जिसको हमने रोज पिया है.
क्यूँ सोचूँ बेचैन न कर दे,
यादों भरा झरोखा मेरा.
दूर कहीं खुशियों से होगा
कल फिर मिलन अनोखा मेरा.
लम्हों की पैबंद लगा कर दामन सौ-सौ बार सिया है.
यह दुनिया है गम का सागर जिसको हमने रोज पिया है.
अंधकार से क्या घबराना,
शायद यह दो चार पहर हो.
दिब्य पुंज है साथ चल रहा.
ना जाने कब कहाँ शहर हो.
उम्मीदों ने साथ "गगन" का जाने कितनी बार दिया है.
यह दुनिया है गम का सागर जिसको हमने रोज पिया है.
जय सिंह "गगन"
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