विशाल-ए-यार की बातें.
ग़मों की, प्यार की बातें.
हटे चिलमन दिखे चेहरा,
ये सब बेकार की बातें.
किसी का हुश्न, कोई लब,
किसी रुखसार की बातें.
दहकते जिस्म, जलते दिल,
किसी अंगार की बातें.
लिखे जो बेवफाई,
उस कलम को तोड़ दी मैंने,
मुहब्बत छोड़ दी मैंने,मुहब्बत छोड़ दी मैंने.
खुशी के पल दिए रब ने,
ग़मों के फिर तराने क्यूँ,
छलकते अश्क आँखों में,
छिपाने के बहाने क्यूँ.
नहीं मंजूर ये रातें,
फकत जो आह में गुजरें.
नहीं मंजूर हर लम्हां,
किसी की चाह में गुजरे.
जो उनके दर तलक जाए,
वो राहें मोड दी मैंने.
मुहब्बत छोड़ दी मैंने,मुहब्बत छोड़ दी मैंने.
जय सिंह"गगन"
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