रविवार, 14 अक्तूबर 2012

आइना तो आइना है.


कविता             
आइना तो आइना है.........

ढलती उम्र की दहलीज पर, 
कदम रखते ही,
जिंदगी के अनुभवों को सुनाना,
जन्म लेती नई पीढ़ी को, 
नैतिकता का पाठ पढ़ाना,
बेशक तुम्हारी महत्वाकांक्षा को, 
नया मोड़ देगा,

पर आईना तो आईना है, 
यह सारे मिथक तोड़ देगा.
  
रोजगार की तलाश में घूमती,
नव चेतन की आत्माएं,
दफ्तरों को अपना निशाना बनायेंगी.
खुद्दारी और नैतिकता की तालीम,
कदम-कदम पर परखी जाएगी.
भूख से तडपता नौनिहाल,
तुम्हें अन्दर तक निचोड़ देगा.

पर आईना तो आईना है, 
यह सारे मिथक तोड़ देगा.
  
नित्य प्रति बढ़ते दहेज़ के ग्राफ से,
हमारी आरती उतारी जायेगी.
बढती महगाई के बोझ तले,
बालिकाएं तो, 
भ्रूण में ही मारी जाएँगी.
आधुनिकता में जी रहा समाज,
कन्यादान की, 
आस छोड़ देगा.

पर आईना तो आईना है, 
यह सारे मिथक तोड़ देगा.

लाइलाज बीमारी से ग्रस्त, 
लक्ष्मण के लिए भगवान राम, 
रो रो कर दवा मांगेगे.
लंका में सोये शुखेन से हनुमान,
प्रदूषण मुक्त हवा मांगेगे.
असह्य वेदना से कराहता पर्वतराज,
पवनपुत्र को,
कैंसर और कोढ़ देगा,

पर आईना तो आईना है, 
यह सारे मिथक तोड़ देगा.

"गगन"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें