गगन
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मेरी तनहाइयाँ
सज़दा
ख्वाब
याद
इंतज़ार
माँ
माँ और बचपन
आओ सावन
चल चंदा उस देश.
तुम्हें क्या नाम दूं
आईना
दर्द
मासूम आंसू.
जुदाई.
सोच.
मर्यादा .
ख्वाहिश.
मशवरा
बज़ट
विकास देखिये.
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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012
आरजू.
हमसे बस दो बातें शायद उनकी भी मजबूरी है.
कहते हैं नफरत के खातिर थोडा प्यार जरूरी है.
उनकी यादें दिल में लेकर मैं जागा हूँ रातों को,
पर उनका सपना बनने की चाहत मगर अधूरी है.
"गगन"
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