गगन
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मेरी तनहाइयाँ
सज़दा
ख्वाब
याद
इंतज़ार
माँ
माँ और बचपन
आओ सावन
चल चंदा उस देश.
तुम्हें क्या नाम दूं
आईना
दर्द
मासूम आंसू.
जुदाई.
सोच.
मर्यादा .
ख्वाहिश.
मशवरा
बज़ट
विकास देखिये.
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गुरुवार, 18 सितंबर 2014
कुर्सी
रोजी-रोटी घर की चिंता खबरें आने-जाने की.
यह कुर्सी ही राजदार है मेरे हर अफ़साने की.
कोशिश
मुक्त कर दिया सूरज को, कल उसको भी घर जाना है.
अगली कोशिश आसमान से, चाँद उठा कर लाना है.
"गगन"
मुझे तुम याद कर लेना.
न हो मेले में जब मस्ती, मुझे तुम याद कर लेना.
बिखरने जब लगे हस्ती, मुझे तुम याद कर लेना.
तुम्हारा शौक इस दरिया के अक्सर पार जाना है.
भंवर जब रोक ले कश्ती, मुझे तुम याद कर लेना.
“गगन”
हासिल.
ज़रा नादान था ये दिल, मगर समझा लिया हमने.
हुआ कुछ भी नहीं हासिल मगर सब पा लिया हमने.
लिखी थी नज्म, जो हमने, कभी तेरी जुदाई में.
जो तेरी याद आयी तो, उसे ही गा लिया हमने.
“
गगन
”
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