गगन
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मेरी तनहाइयाँ
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माँ
माँ और बचपन
आओ सावन
चल चंदा उस देश.
तुम्हें क्या नाम दूं
आईना
दर्द
मासूम आंसू.
जुदाई.
सोच.
मर्यादा .
ख्वाहिश.
मशवरा
बज़ट
विकास देखिये.
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गुरुवार, 29 नवंबर 2012
अंदाज़-ए-बयां.
न तो वो शख्स बदला है, न उसका प्यार बदला है.
न वो तस्वीर बदली है, न वो रुखसार बदला है,
बदलना वक्त के माफिक, तकाजा है जमाने का,
तभी तो यूँ मुहब्बत में, ज़रा इजहार बदला है.
जय सिंह "गगन"
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